तीर्थराज प्रयागराज: कुम्भ मेला
तीर्थराज प्रयागराज में आज से कुम्भ का शुभारम्भ हो रहा हैं पूरी दुनिया से १५ करोड़ कुम्भ मेले के आध्यत्मिक शहर में श्रधालुवों का आगमन हो रहा हैं इस पावन पुनीत स्थल पर अनेको देशों से गणमान्य लोग आ रहे हैं १४ जनवरी २०१९ से ५ मार्च २०१९ तक कुम्भ मेला रहेगा | भारत सरकार और उत्तरप्रदेश सरकार ने इस बार कुम्भ को भव्य कुम्भ दिव्य कुम्भ का नाम दिया गया हैं | इसकी भव्यता की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही हैं
माननीय प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी व् उत्तरप्रदेश मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इस पवित्र पर्व को दुनिया के अदभुत स्वरुप का रूप दिया हैं आकाश मंडल से भी कुम्भ त्र्थ्राज प्रयागराज की झलक दिखाई देती हैं इस बात की प्रमाणिकता नासा ने दिया हैं कुम्भ की भभ्यता के लिय योगी सरकार ने पेंट माय सिटी की योजन ने सारे शहर को वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत, भगवद गीता, सभी धर्म ग्रन्थ अध्य्तामिक महत्व संस्कृति को दुनिया भर से आये पेंटिग कलाकारों ने अपने कुंची से तीर्थराज प्रयागराज की दीवारों को अद्भुत चित्रों रंगों से रंग कर श्रध्लुवों के मन को मोहित कर दिया हैं |
योगी सरकार इस कुम्भ पर्व के माध्यम से युवावों के हृदय पर अमिट स्मृति भर जा ये और अध्यात्मिक महत्व को समझ सके | दुनिया का कुम्भ एक ऐसा मेला हैं जिसमे किसी तरह का निमन्त्रण आगमन का प्रचार नहीं किया जाता हैं सारी दुनिया के श्रध्लुवों स्वयं इस कुम्भ के मेले में खींचे चले आते हैं |
कुम्भ की प वित्र में समाहित हो जाते हैं सारी दुनिया अचम्भित हैं इसी अचम्भित आकर्षण को प्रेक्सा फिल्म्स ने अपने प्रोडक्शन के तहत तीर्थराज प्रयागराज नाम से एक शार्ट फिल्म का निर्माण किया हैं फिल्म के क्रिएटिव निर्देशक एम् .एस. नारायनन ने कांसेप्ट ने एक अदभुत अविस्मर्णीय फिल्म के साथ प्रयाग राज के टाइटल सॉंग “ जो हिंदी हिन्दू की बात करेगा वो ही प्रयागराज पर राज करेगा “ तीर्थ राज प्रयागराज के प्रचीनतम तथ्यों को शब्दों से बड़ी खूबसूरती से पिरोया हैं गीतकार साहिल बी श्रीवास्तव व् क्रिएटिव एस्कुटिव प्रोडूसर रचना एस. कुमार के सहयोग के साथ ही साथ सूत्रधार पदमभूषण श्री अनूप जलोटा कि आवाज ने इस इस डाकुमेंट्री फिल्म को एक नयी उच्चाईयों को प्रदान किया हैं इस फिल्म के के विषय वास्तु के अनुशंधान राइटर शैलेन्द्र सिंह ने एक उत्तम पटकथा को लिखा हैं फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिल्म के प्रदर्शन की सही रूप रेखा इंटरनेशनल डिस्ट्रीब्यूटर दीपिका ऐ . ने सही आकर दे रही हैं फिल्म को मिडिया के माध्यम से राष्ट्रिय व् अंतरराष्ट्रीय प्रिंट मिडिया से रूबरू कराने को सही दिशा मीडिया इंचार्ज बी.श्रीकुमार दे रहे हैं
तीर्थराज प्रयागराज फिल्म के निर्देशन की बागडोर पियूष चक्रवर्ती-साहिल बी श्रीवास्तव ने फिल्म को अदभुत रूप देने में अपनी क्षमता का भरपूर योगदान दिया हैं एडिटर सदा शुक्ल का स्पंदन बहुत की चुस्त हैं फिल्म देखते ही तीर्थराज प्रयागराज के प्रचीनतम तथ्यों के साथ इतिहास की सच्चाई आँखों के सामने एक-एक दृश्य से आत्मसात हो जाता हैं | कभी गर्व तो कभी आँखों में आसू भर जाता हैं प्रेक्सा फिल्म्स के बैनर के तहत बनी फिल्म तीर्थराज प्रयागराज का प्रथम प्रयास ने सराहनीय कदम बढाया हैं | फिल्म से जुडी सारी टीम बधाई के पात्र हैं |
भारत के प्राचीनतम शहरों में धार्मिक शहर, जहाँ देवों का वास होता हैं | ऋषि मुनि और संतों की नगरी होने के वजह से तीर्थो के राजा तीर्थराज के उपनाम से भी जाना जाता हैं |
श्रृष्टि निर्माण के पश्चात भगवान् श्री ब्रह्मा जी ने इस पृथ्वी के पर्यावरण के शुद्धि के लिए इस पावन स्थल पर प्रथम यज्ञ किया था |तभी से इसका नाम प्रयागराज हो गया |
तीर्थ राज की संज्ञा और प्रयाग के मिश्रण से इस धार्मिक शहर का नाम प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता हैं इस पावन धरती पर तीन महान नदियों का संगम गंगा-यमुना और सरस्वती के रूप में अद्भुत छटा बिखेरती हैं जिसे लोग त्रिवेणी संगम के नाम से भी सभी जानते हैं | इस संगम में स्नान करने से मनुष्य जनम मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता हैं |
इस पवित्र धरती पर स्नान करने के पश्चात नाग वाशुकी मंदिर , अलोपी देवी मंदिर , तक्षेक्श्वर नाथ मंदिर , भारद्वाज आश्रम ,मन कामेश्वर मंदिर ,ललिता मंदिर, पडला महादेव मंदिर ,और लेते हुए बजरंगबली मंदिर इन सभी के दर्शन मात्र से मनुष्य अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता हैं |
यह शहर गणमान्य विविभुतियों की जनम्स्थली भी हैं राजनीति क्षेत्र ,साहित्य क्षेत्र ,कला क्षेत्र में जैसे सुमित्रा नंदन पन्त ,महादेवी वर्मा ,हरिवंश राय बच्चन, अमिताभ बच्चन ,पंडित जवाहरलाल नेहरू इत्यादि | प्रेक्सा फिल्म्स ऐतिहासिक ,धार्मिक ,और भारतीय संस्कृति को विश्वपटल पर वृतचित्र,लघु फिल्म , कलात्मक फिल्म ,के माध्यम से सही सक्ष्यों के आधार पर नयी दिशा देने के प्रयास में कार्यरत हैं |
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है. पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए, मतभेदों के बावजूद, मकर संक्रांति को महत्व दिया गया. ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते है तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मकता खुशी और समृधि के साथ साझा हो जाती है. इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह से जुडी हुई है, जिन्हें यह वरदान मिला था कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी. जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी अपनी आँखें बंद की और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई.
भारत में मकर संक्रांति त्यौहार और संस्कृति
भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर प्रान्त में बहुत हर्षौल्लास से मनाया जाता है. लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है.
विदेशों में मकर संक्रांति के त्यौहार के नाम
भारत के अलावा मकर संक्रांति दुसरे देशों में भी प्रचलित है लेकिन वहां इसे किसी और नाम से जानते है.नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहते है. नेपाल के ही कुछ हिस्सों में इसे मगही नाम से भी जाना जाता है.थाईलैंड में इसे सोंग्क्रण नाम से मनाते है.म्यांमार में थिन्ज्ञान नाम से जानते है.कंबोडिया में मोहा संग्क्रण नाम से मनाते है.श्री लंका में उलावर थिरुनाल नाम से जानते है. लाओस में पी मा लाओ नाम से जानते हैं. भले विश्व में मकर संक्रांति अलग अलग नाम से मनाते है लेकिन इसके पीछे छुपी भावना सबकी एक है वो है शांति और अमन की. सभी इसे अंधेरे से रोशनी के पर्व के रूप में मनाते है.मकर संक्रांति किसानों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है, इसी दिन सभी किसान अपनी फसल काटते है. मकर संक्रांति भारत का सिर्फ एक ऐसा त्यौहार है जो हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है. यह वह दिन होता है जब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है. हिन्दूओं के लिए सूर्य एक रोशनी, ताकत और ज्ञान का प्रतीक होता है. मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है. एक नए तरीके से काम शुरू करने का प्रतीक है. मकर संक्रांति के दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक पर्यावरण अधिक चैतन्य रहता है यानि पर्यावरण में दिव्य जागरूकता होती है इसलिए जो लोग आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे है वे इस चैतन्य का लाभ उठा सकते है.
मकर संक्रांति पूजा विधि
जो लोग इस विशेष दिन को मानते है वे अपने घरों में मकर संक्रांति की पूजा करते है इस दिन के लिए पूजा विधि को नीचे दर्शाया गया है-
• सबसे पहले पूजा शुरू करने से पहले पूण्य काल मुहूर्त और महा पुण्य काल मुहूर्त निकाल ले, और अपने पूजा करने के स्थान को साफ़ और शुद्ध कर ले. वैसे यह पूजा भगवान् सूर्य के लिए की जाती है इसलिए यह पूजा उन्हें समर्पित करते है.
• इसके बाद एक थाली में 4 काली और 4 सफेद तीली के लड्डू रखे जाते हैं. साथ ही कुछ पैसे भी थाली में रखते हैं.
• इसके बाद थाली में अगली सामग्री चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते, शुद्ध जाल, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है.
• इसके बाद भगवान के प्रसाद के लिए एक प्लेट में काली तीली और सफेद तीली के लड्डू, कुछ पैसे और मिठाई रख कर भगवान को चढाया जाता है.
• यह प्रसाद भगवान् सूर्य को चढ़ाने के बाद उनकी आरती की जाती है.
• पूजा के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढक कर रखती हैं.
• इसके बाद सूर्य मंत्र ‘ॐ हरं ह्रीं ह्रौं सह सूर्याय नमः’ का कम से कम 21 या 108 बार उच्चारण किया जाता है.
कुछ भक्त इस दिन पूजा के दौरान 12 मुखी रुद्राक्ष भी पहनते हैं, या पहनना शुरू करते है. इस दिन रूबी जेमस्टोन भी फना जाता है.
मकर संक्रांति के दिन के शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है.
• पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त 14:00 बजे से 17.41 बजे के बीच है, जोकि कुल 3 घंटे और 41 मिनिट है.
• संक्रांति 14.00 पर शुरू है.
• इसके अलावा महा पूण्य काल के शुभ मुहूर्त 14:00 बजे से 14:24 बजे के बीच होता है जोकि कुल 23 मिनिट के लिए रहता है.
मकर संक्रांति पूजा से होने वाले लाभ
• इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
• अध्यात्मिक भावना शरीर को बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है.
• इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते है.
• समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फ़ैलाने का यह धार्मिक समय होता है.
मकर संक्रांति को मनाने का तरीका
मकरसंक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान, व पूण्य का विशेष महत्व है. इस दिन लोग गुड़ व तिल लगाकर किसी पावन नदी में स्नान करते है. इसके बाद भगवान् सूर्य को जल अर्पित करने के बाद उनकी पूजा की जाती हैं और उनसे अपने अच्छे भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है. इसके पश्चात् गुड़, तिल, कम्बल, फल आदि का दान किया जाता है. इस दिन कई जगह पर पतंग भी उड़ाई जाती है. साथ ही इस दिन तीली से बने व्यंजन का सेवन किया जाता है. इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भी भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं, और खिचड़ी का दान तो विशेष रूप से किया जाता है. जिस कारण यह पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा इस दिन को अलग अलग शहरों में अपने अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस दिन किसानों के द्वारा फसल भी काटी जाती हैं.
भारत में मकर संक्रांति त्यौहार और संस्कृति
भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर प्रान्त में बहुत हर्षौल्लास से मनाया जाता है. लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है.
• उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है. इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है. इस अवसर में प्रयाग यानि इलाहाबाद में एक बड़ा एक महीने का “माघ मेला” शुरू होता है. त्रिवेणी के अलावा, उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़ मुक्तेश्वर और बिहार में पटना जैसे कई जगहों पर भी धार्मिक स्नान हैं
• पश्चिम बंगाल : बंगाल में हर साल एक बहुट बड़े मेले का आयोजन गंगा सागर में किया जाता है. जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी. इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैं.
• तमिलनाडु : तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से मनाते है, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है.
• आंध्रप्रदेश : कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है. जिसे यहाँ 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाते हैं. यह आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा इवेंट होता है. तेलुगू इसे ‘पेंडा पाँदुगा’ कहते है जिसका अर्थ होता है, बड़ा उत्सव.
• गुजरात : उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है. इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है. गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है इस दौरान वहां 2 दिन का राष्ट्रीय अवकाश भी होता है.
• बुंदेलखंड : बुंदेलखंड में विशेष कर मध्यप्रदेश में मकरसंक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.
• महाराष्ट्र : संक्रांति के दिनों में महाराष्ट्र में टिल और गुड़ से बने व्यंजन का आदान प्रदान किया जाता है, लोग तिल के लड्डू देते हुए एक – दूसरे से “टिल-गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते है. यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है. जब विवाहित महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम से मेहमानों को आमंत्रित करती है और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देती हैं.
• केरल : केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है.
• उड़ीसा : हमारे देश में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरुआत करते हैं. सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते है. उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ यात्रा शामिल है, जिसमे घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है.
• हरियाणा : मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह मनाया जाता है.
• पंजाब : पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है.
• असम : माघ बिहू असम के गाँव में मनाया जाता है.
• कश्मीर : कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है.
आप सभी को मकरसंक्रांति /पोंगल / लोहड़ी के शुभअवसर पर इन्समाचार की सारी टीम तरफ से आप सभी हार्दिक शुभकामनायें आप सपरिवार कुशल मंगल की कामना करते हैं
साहिल बी श्रीवास्तव [फिल्म लेखक व् निर्देशक की कलम ]
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