एक चाय बेचने वाला शख्स कभी देश का पीएम भी बनेगा ये किसी ने सोचा नहीं था। साल 1950 में वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्र मोदी राजनीति में ना बड़ा नाम पाया बल्कि देश का प्रधानमंत्री बन कर खुद को साबित किया।
मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया। बचपन से ही उनका संघ की तरफ खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। वे 1967 में 17 साल की उम्र में अहमदाबाद पहुंचे और उसी साल उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली।
इसके बाद 1974 में वे नवनिर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे लेकिन मोदी कभी पुराने दिनों को भुला ना सके।
पीएम मोदी ने कहा, सभी से खासकर युवा दोस्तों से आग्रह करता हूं कि भागदौड़ भरी जिंदगी में से थोड़ा समय निकालकर सोचिए और आत्मनिरीक्षण कीजिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने दिनों की अपनी कहानी बयां की है। उन्होंने आम इंसान की तरह हिमालय पर बिताई गई जिंदगी का जिक्र किया और बताया कि उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रति कब हुआ। पीएम मोदी ने बताया कि बतौर प्रचारक उन्होंने आरएसएस के दफ्तर में चाय बनाई और खाना पकाया। यही नहीं बर्तन भी धुले।
‘Humans of Bombay’ नाम के फेसबुक पेज पर पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने पुराने दिनों की कहानी की दास्तां बयां की। मोदी ने कहा मैं हिमालय से वापस आने के बाद जाना कि मेरी जिंदगी दूसरों की सेवा के लिए बनी है। मैं अहमदाबाद आ गया था।
मेरी जिंदगी अलग तरह की थी, मैं पहली बार किसी बड़े शहर में रह रहा था। वहां मैं अपने चाचा की कैंटीन में उनकी कभी कभी मदद करता था।
आखिरकार मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल होने के बाद नियमित प्रचारक बन गया था। मुझे वहां अलग-अलग क्षेत्रों से संबंध रखने वाले लोगों से बात करने का मौका मिला।
मैंने वहां काफी काम किया। वहां सभी की आरएसएस दफ्तर को साफ करने, साथियों के लिए चाय बनाने और खाना पकाने, बर्तन धोने की बारी आती थी।
पीएम मोदी ने कहा कि जीवन काफी व्यस्त हो चला था। लेकिन मैं हिमालय में मिली शांति को नहीं भूलना चाहता था। इसलिए जिंदगी में संतुलन बनाने के लिए हर साल से पांच दिन निकालकर अकेले में बिताने का फैसला किया। कई लोग यह नहीं जानते हैं कि मैं दिवाली के मौके पर पांच दिनों के लिए ऐसी जगह पर जाता हूं।
उन्होंने कहा, ”इन जगहों में जंगल हो सकती है, जहां साफ पानी हो और लोग न हों। मैं उन पांच दिनों का खाना पैक कर लेता हूं। वहां उस दौरान रेडियो, टीवी, इंटरनेट और न्यूजपेपर नहीं होता है। एकांत उन्हें जिंदगी जीने के लिए मजबूती देता है। लोग मुझसे पूछते हैं आप किससे मिलने जा रहे हैं? मैं उन्हें कहता हूं- मैं मुझसे मिलने जा रहा हूं।
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