भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी यानी RCEP में शामिल न होने का फैसला लिया है। इस समझौते में अनसुलझे मुद्दों के कारण भारत ने इस RCEP से बाहर रहना ही सही समझा। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि RCEP के तहत कोर हितों पर कोई समझौता नहीं होगा।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी की तीसरी वार्ता में एक औपचारिक समझौते को लेकर काफी उम्मीदें दुनिया भर में लगाई जा रही थीं। लेकिन 16 देशों के बीच बनने वाले मुक्त व्यापार क्षेत्र को लेकर भारतीय चिंताओं के उचित समाधान नहीं मिलने पर भारत ने समझौते को लेकर पुराने रूख पर कायम रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि जब तक भारत को होने वाले असमान व्यापारिक घाटे और भारतीय व्यवसाय और उत्पादों को समान अधिकार नहीं मिलेंगे तब तक भारत इस समझौते में शामिल नहीं हो सकता है।
भारत एक समग्र क्षेत्रीय सहयोग के साथ-साथ मुक्त व्यापार के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम आधारित प्रणाली चाहता है। RCEP संवाद के सात साल के सफ़र में वैश्विक आर्थव्यवस्था और व्यवसायिक परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। हम इन बदलावों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। मौजूदा RCEP समझौता में पूरी तरह से उन मूल सिद्धान्तों की झलक नहीं है जिनके आधार पर इसका गठन हुआ था। साथ ही इसमें भारत की चिताओं का संतोषजनक समाधान भी नहीं है। ऐसे में भारत इसमे शामिल नहीं हो सकता है।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि –
”हमारे किसान, व्यवसायी, पेशेवर और उद्योगों को ऐसे फैसलों से जोखिम है। कामगार और उपभोक्ता दोनों बराबर महत्वपूर्ण हैं, जो भारत को एक बड़ा बाजार और खरीदने की क्षमता के मामले में तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनाते हैं। जब मैं आरसीईपी समझौते को सभी भारतीयों के हित में देखता हूं तो मुझे कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। लिहाजा न तो गांधी जी की ताबीज ना ही मेरा अपना जमीर मुझे आरसीईपी में शामिल होने अनुमति देता है।”
दरअसल मुक्त व्यापार समझौते के मुताबिक़ आयात और निर्यात की सुगमता को बढ़ाया जाता है। ऐसे समझौते के तहत सदस्य देशों को टैक्स घटाने होते हैं और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया जाता है। समझौते के बाद इन देशों में एक दूसरे के उत्पाद और सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। RCEP में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड भी शामिल हैं।
