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तलवार के बदले तलवार, राज ठाकरे के राजनीतीक पारी की नयी शुरुआत।

एक सज्जन पुरुष ने मुझसे पूछा राजनीति का क्या अर्थ होता है? मैंने उनको जवाब दिया वैसे तो राजनीति, राज्य चलाने की नीति होती है परंतु अब राजनीति मतलब केवल राज करने की नीति बन के रह गई है।
और आजकल इसका सबसे बड़ा उदहारण महाराष्ट्र प्रान्त में दिख रहा है।
वैसे तो माजराष्ट्र मे राज ठाकरे के नाम से कौन अंजान है परंतु वर्तमान राजनीतिक परिस्तिथि में राज ने भगवा रंग चढ़ा रखा है।
आइये इस बात को समझते है कि क्या भगवा ज़रूरी है या फिर उनकी मज़बूरी है।
तीव्र प्रान्तवाद और मराठी अस्मिता की राजनीती करने वाले राज ठाकरे को उनके चाचा का असली राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता है, परंतु राजनीति संभावनाओं का खेल है और जिस राज ठाकरे को बालासाहेब पार्ट2 माना जाता था वो महाराष्ट्र में दरकिनार हो चुके थे। जब केंद्र चुनाव में राज ठाकरे ने एनसीपी के साथ मंच साझा कर के मोदीजी के विरुद्ध भाषण दिए तो ये भी बोला जाने लगा कि अब राज ठाकरे ने अपनी पार्टी किराये पे दी है।

कहा जाता है राजनीति में कुछ भी संभव है और हिन्दू ह्रदय सम्राट माने जानेवाले बालासाहेब के पुत्र श्री उद्धव ठाकरे ने जब अपने विचारधारा के विरुद्ध जा के एनसीपी और कांग्रेस की मदद से सत्ता पर काबिज हुए तो कई लोगो को आश्चर्य हुआ।एक आम नागरिक से लेकर खुद शिवसैनिको ये बात हजम नहीं हो रही थी।लेकिन राज ठाकरे को इसी दिन का इंतज़ार था कि कब उद्धव एक बड़ी राजनीतिक चुक करे ताकि उनको एक नए पारी की शुरुआत करने का मौका मिले।
देश में इस समय CAA और NRC पे राजनीतिक पार्टियां ही नहीं बल्कि फ़िल्मी हस्तिया शिक्षण संस्थान और बुद्धिजीवीयों की राय बटी हुई है। वही दूसरे तरफ मुस्लिम संघटन द्वारा इसके विरोध में उपद्रव भी मचा रखा है।
ऐसे में राज ठाकरे ने भगवा चोला पहनना सही समझा।ऐसा करने से उनको एक तीर से कई शिकार करने का मौका मिल गया।
कौन से शिकार आइये आपको बताते है।
1)उद्धव के इस नए रूप से जो शिव सैनिक असंतुष्ट है उनको अपनी तरफ लाना।
2)बालासाहेब ठाकरे के बाद हिंदुत्व और मराठी अस्मिता की राजनीति का जो वैक्यूम बना था उसमे खुद को भरना।
3) मोदी ,भाजपा और संघ से करीबी होना ये भी उनकी एक मंशा हो सकती है।
4) अपने बेटे अमित ठाकरे को उतार के उन्होंने ये भी बता दिया की वे एक लंबी संघर्ष के लिए तैयार है।

9 फेब्रुरी के अपने भाषण में राज ठाकरे ने पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों पे जम के बरसे और उनको समर्थन करनेवाले लोगो को चेतावनी दे दी। जामिया और शाहीन बाग़ में हुए उपद्रव को ध्यान रख के राज ठाकरे बोले की रैली का जवाब रैली
पत्थर का जवाब पत्थर
और तलवार का जवाब तलवार से दूंगा।
ये शब्द सुन के उनके समर्थक एकदम उत्साहित होगए।
आजकल देश में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की गंगा बह रही है और हर कोई इसमें नहा के पावन होना चाहता है। अपने डूबते वोट प्रतिशत को और राजनीतिक नंबर बढ़ाने का इससे अच्छा मौका शायद राज ठाकरे को नहीं मिलेगा।
राज ठाकरे की कही हुई हर बात सही और उनका लिया हुआ निर्णय भी सही है।
उनके इस नए रूप से सबसे ज़्यादा नुकसान शिवसेना को होगा इसमें कोई दो राय नहीं।
लेकिन अगर यही राज ठाकरे अलग चुनाव लड़े तो हिन्दू वोट बैंक बिखर सकता है और ये प्रदेश में भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं होगा।क्या राज ठाकरे हिंदुत्व की राजनीति पे चलते हुए भजपा के साथ जाएंगे या परदे के पीछे कुछ अलग खेल हो रहा है ये बात भविष्य में स्पष्ट होगी।
फिलहाल जरूरी है कि राज के इस नए राजनीक रूप को बारीकी से पढ़ा जाए।

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