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कुर्सी बड़ी या कोर्ट: हिंदी विश्वविद्यालय क्यों है लगातार चर्चा में, पढ़ें

माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना: विश्वविद्यालयों के इतिहास में पहली घटना

कुलपति की कुर्सी पर अवैध कब्जा करने के चलते- प्रो एल. कारुण्यकरा का निलंबन

वर्धा, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री की नियुक्ति मनीयय उच्च न्यायालय ने रद्द करते हुए शिक्षा मंत्रालय को आदेश दिया था कि विश्वविद्यालय के नियमानुसार नए कुलपति की नियुक्ति करें। लेकिन प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा ने बिना किसी आदेश के कुलपति कार्यालय जाकर 31 मार्च को कुलपति की कुर्सी पर अवैध रूप से बैठ गए। वैसे तो विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर को ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा कृत्य किया।

सूचना मिलते ही कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया ने कुलपति की कुर्सी पर अवैध रूप से बैठे प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा से आदेश की प्रति दिखाने की मांग की तो उन्होंने जबाब में कहा कि हमें किसी आदेश की जरूरत नहीं है क्योंकि मैं स्वयं कुलपति हूँ। उसके बाद प्रोफेसर कारुण्यकरा ने आनन-फानन में कई कार्यालय आदेश भी जारी कर दिये। जिसमें उन्होंने कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया को निलंबित करने का आदेश और शिक्षा मंत्रालय द्वारा बुलाई गई EC की बैठक को निरस्त कर दिया। प्रोफेसर कारुण्यकरा यहीं नहीं रुके बल्कि कुलसचिव के रूप में डॉ. अमरेन्द्र कुमार शर्मा को नियुक्त कर दिया। बता दें यह वही डॉ. अमरेन्द्र कुमार शर्मा हैं जो अपने आप को शिक्षक संघ का अध्यक्ष कहते हैं जिसे विश्विद्यालय ने फर्जी घोषित किया हैl


यह सब अनुशासनहीनता को देखकर मंत्रालय प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा पर कार्यवाही करने को मजबूर हुआ क्योंकि किसी भी विश्वविद्यालय के इतिहास में आज तक इस प्रकार की घटना कभी नहीं घटी की कोई कुलपति की कुर्सी पर अवैध रूप से कब्जा कर ले यह बहुत ही निंदनीय कृत्य है। ऐसे में कार्यवाही होना तो लाज़मी है।


वैसे प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा का ऐसी घटनाओं से लंबा नाता रहा है। यह घटना है 16 अगस्त 2018 की, उस समय कुलपति का चार्ज प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा के पास था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का निधन हो गया था, उस समय आयोजित उनकी शोक सभा में प्रधानमंत्री पर अशोभनीय टिप्पणी कर चर्चा में आए उसके बाद कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के दबाव में लिखित में माफी मांगी।
उसके बाद जब फिर से एकबार जब कुलपति का प्रभार कुलपति रजनीश शुक्ल के जाने के बाद मिला तो मनमाने ढंग से विश्वविद्यालय को चलाने का काम किया। आइए ऐसी ही कुछ घटनाओं से आपको परिचित करवाते हैं।
• विश्वविद्यालय के शिक्षकों में गुटबंदी शुरू कर सोशल मीडिया के माध्यम से सीधे डॉ. धरवेश कठेरिया पर अशोभनीय टिप्पणी का मामला। जब डॉ. कठेरिया ने इसकी शिकायत की तो कोई कार्यवाही नहीं की गई। यह टिप्पणी सिर्फ किसी शिक्षक डॉ. धरवेश कठेरिया पर नहीं बल्कि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. धरवेश कठेरिया के ऊपर थी। शिकायत के बावजूद कोई कार्यवाई नहीं की गईl

• उत्कृष्ट शिक्षक पुरुस्कार समिति में प्रोफेसर कृपाशंकर चौबे जिनपर कई आरोपों की जांच चल रही है उनसे उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों के नाम नामित करवाना। जिसपर शिक्षक संघ के अध्यक्ष के रूप में डॉ. धरवेश कठेरिया ने प्रश्न उठाया तो विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने फेसबुक पर उनके नाम से अशोभनीय टिप्पणी की। उस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई बल्कि संरक्षण प्रदान किया।


• विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों दारा राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के क्रम में NIA के विरोध की सूचना मिलने के बावजूद राष्ट्र विरोधी छात्रों के खिलाफ कोई कार्यवाही न करना बल्कि उनको संरक्षण प्रदान करने जैसा काम किया गयाl
ऐसे ही और भी कार्यों को करने वाले प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा ने माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना करते हुए कुलपति की कुर्सी पर अवैध कब्जा कर लिया था। प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा यहीं नहीं रुके वो सुप्रीम कोर्ट भी चले गए जहां पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इनकी अपील को खारिज करते हुए वापस भेज दिया। उसके बाद यहाँ मंत्रालय और EC ने इनके दोषों की जांच के लिए प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा को निलंबित कर दिया।
विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा लगातार विश्विद्यालय के हित और उत्थान के लिए कार्य किए जा रहे हैंl
इसलिए विश्विद्यालय में अध्ययन-अध्यापन का सुंदर वातावरण बन रहा है, खुशी का माहौल है, वरन इतने बड़े विश्विद्यालय में शांति नहीं होती l
शिक्षक संघ के अध्यक्ष एवं कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया की सबसे बड़ी कुशलता है की वह अपने कार्यों में विद्यार्थियों के कामों को प्राथमिकता दे रहे हैंl

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