कल अरविन्द केजरीवाल ने तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ ली। एक त्रिकोनीय मुकाबले में उन्होंने देश की सबसे बड़ी दो पार्टियों को हरा दिया।
जहाँ एक ओर कांग्रेस के लिए दिल्ली में उसके अस्तित्व का सवाल उठ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा समर्थक भी मायूस है कि इतने मेहनत के बावजूद परिणाम बुरे क्यों रहे। अब यहाँ कई सवाल खड़े हो गए है। जिनमे से प्रमुख सवाल है क्या पीम मोदीजी का जादू विफल हो रहा है? क्या सबका साथ सबका विकास वाले नारे में वो बात नहीं रही? क्या आरएसएस और भाजपा साथ मिल कर भी दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश के चुनाव नहीं जीत सकते? जीत दूर की बात परंतु इतनी बुरी हार?
सवाल कई सारे है और जवाब भी। किसी का कहना है कि कांग्रेस ने अपना वोट शेयर कैडर के जरिये पूरा आप पार्टी को दे दिया ताकि भाजपा को रोका जा सके।खैर, इस बात में दम ज़रूर है क्योंकि मैं नहीं मानता की दिल्ली में कांग्रेस इतना कमजोर होगई हे की 4% वोट शेयर पर सिमट जाए। अब बात करते है भाजपा की, वैसे तो 2019 दिसम्बर तक बीजेपी दिल्ली में कही नज़र नहीं आ रही थी पर CAA के खिलाफ जो प्रदर्शन हुए उसने बीजेपी को अच्छा मुद्दा दे दिया।चाहे जामिया का प्रदर्शन हो या शाहीन बाग का धरना बीजेपी इसे मुद्दा बनाने से नहीं चुकी, दूसरी तरफ आरएसएस ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी परंतु परिणाम दुखद रहे।
एक समय ऐसा लग रहा था कि बीजेपी सरकार भले ही ना बना पाए परंतु केजरीवाल को अच्छा मुक़ाबला देते हुए एक मजबूत विपक्ष ज़रूर बनेगी, लेकिन बीजेपी केवल 8 सीटो पर सिमट गयी। हाँ, बीजेपी का वोट प्रतिशत ज़रूर बढ़ा पर उससे कोई ख़ास असर नहीं हुआ।अब सवाल उठता है कि बीजेपी से चूक कहा हुई। बात केवल दिल्ली की नहीं झारखंड के चुनाव परिणाम देख लीजिए। महाराष्ट्र के चुनाव में बीजेपी को जितने सीट की अपेक्षा थी, उतनी नहीं मिली, हालाँकि NDA वहा जीत गया, परंतु शिव सेना की दग़ाबाज़ी और अन्य कारण से बीजेपी सरकार नहीं बना पाई।
अब ये अन्य कारण क्या है यही जानना महत्वपूर्ण है।
बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी हे उनका लोकल यूनिट।दरअसल सामान्य लोग राष्ट्रीय स्तर पर मोदीजी और अमित शाह को एक बड़े कद्दावर और कर्मठ नेता के रूप में देखते है और मैं ये बात दावे के साथ कह रहा हूँ की आज भी अगर केंद्र चुनाव हो जाये तो 2019 वाला ही परिणाम आएगा। पर वही जनता जब बीजेपी के लोकल नेताओ को देखती है तो मामला बिलकुल अलग पड जाता है। झारखंड , दिल्ली और महाराष्ट्र इन सभी प्रदेशों में एक सामान बात ये रही की लोकल भाजपा नेता कई साल से गायब रहे अपने क्षेत्र में उनको लोगो ने सालो से देखा भी नहीं।
भाजपा ने तीनो प्रदेश में राष्टीय मुद्दे जैसे 370, राम मंदिर CAA को भुनाने की कोशिश की पर परिणाम अच्छे नहीं रहे। एक बात समझना होगा की जनता मोदी शाह के काम से खुश है और उनके फैसलो के साथ है।
लेकिन प्रदेश का चुनाव प्रदेश और क्षेत्रिय नेता का चेहरा देख कर और उनके काम तथा सामान जनता के बीच उनकी छवि देख कर ही जीता जा सकता है। जहाँ मोदीजी पीएम बनकर भी अपने क्षेत्र बनारस का ध्यान रखते है और वहा की जनता से संपर्क रखते है ठीक वैसा ही मॉड्यूल उनके अन्य सांसद , विधायक , और लोकल प्रतिनिधि को अपनाना पड़ेगा।
दिल्ली और पश्चिम बंगाल में तो ये तथ्य सामने आई है कि वहा की प्रदेश सरकार ने केंद्र के बनाये हुए स्कीम को अपना नाम देकर जनता को गुमराह करने का काम दिया। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि भाजपा क्षेत्र इकाई क्या कर रही है? क्या ये माना जाए की भाजपा लोकल यूनिट पूरी तरह प्रधानमंत्री के कार्यो को विफल करने में लगा है?
मेरा भाजपा के सामान्य समर्थक से ये अनुरोध है कि वो
अपने अपने एरिया के भाजपा विधायक , संसद या कोई भी पार्टी प्रतिनिधि की रिपार्ट बनाए और पार्टी के प्रादेशिक मुख्यालय और पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय पर भेजे। याद रखिए मोदीजी जैसे नेता आपको वापस मिलना मुश्किल है, और हम भाजपा के लोकल नेताओ की विफलता के कारण ऐसे प्रधानमंत्री को विफल होता नहीं देख सकते।
अरविन्द केजरीवाल ने बिना पीम मोदी को टारगेट किये हुए ये चुनाव जीता है। ये चुनाव के बाद सभी विपक्षी पार्टी यही फार्मूला अपनाएगी और लोकल मुद्दों को उठायेगी। इसलिये ये ज़रूरी हे की अब आम जनता अपने लोकल समस्याओ का रिपार्ट बनाये और भाजपा के नेताओ की रिपार्ट भी बनाए। पार्टी को भी ऐसे लोगो को ही आगे बढ़ने देना चाहिए जो प्रधानमंत्री के काम को और पार्टी के विचारधरा को सामान जनता के बीच ले जा सके।
