तीन तलाक :लोक सभा में एतिहासिक जीत
27/12/2018 (साहिल बी श्रीवास्तव –फिल्म लेखक व् निर्देशक की कलम)
दिन गुरूवार साल के अंतिम को लोकसभा में एक एतिहासिक जीत दर्ज हो गयी| तीन तलाक को अपराध के श्रेणी में लोकसभा से मंजूरी मिलते ही कितनी मुस्लिम पीड़िता महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान बिखेर गयी | लोकसभा में तीन तलाक पर वोटिंग के दरमियाँ ११ वोट विरोध के रूप में लेकिन २४५ पक्ष में वोटिंग मिली | पहले भी इस बिल को लोकसभा में मंजूरी मिली थी लेकिन राज्यसभा में इसकी मंजूरी नहीं मिली इसके बाद सरकार अध्यादेश लेकर आयी थी लेकिन अब उसी अध्यादेश को सरकार बिल को रूप में लेकर आयी हैं | लेकिन इस बार सरकार ने इस बिल में कई संसोधन किये हैं कोशिश की गयी हैं कुछ नयी बातों को सम्ल्लित किया गया हैं |
पहले कोई भी या पुलिस केस दर्ज़ कर सकती थी अब पीड़िता या उसका कोई करीबी रिश्तेदार ही केस दर्ज करवा सकता हैं उसके साथ ही साथ पहले गैर जमानती और संग्ये अपराध होने के कारण पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती थी| लेकिन अब मजिस्ट्रेट जमानत दे सकता हैं पहले समझोते का प्रवधान नहीं था लेकिन अब मजिस्ट्रेट के सामने दोनों पक्ष आपसी समझोते से निपटारा कर सकते हैं |
लोकसभा में विपक्षी दल ने सरकार से इस बिल को जॉइंट सिलेक्ट कमिटी में भेजने के पक्ष में खड़े रहे लेकिन बिल को जॉइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भजने वाले प्रस्ताव की मागं को सरकार ने ठुकरा दिया |
प्रस्ताव ठुकराने पर कांग्रेस वाकआउट करते ही समाजवादी पार्टी ,राष्ट्रीय जनता दल ,तृणमूल AIADMK,TRS,AIUDF,TDP,NCP सभी एकजुट हो गये | सभी विपक्षी नेता संसद से बाहर चले गए | विपक्षी दल का एकमत रहा कि इस बिल को अपराध की श्रेणी में नहीं होना चाहिए ये सिविल का मामला हैं |
कानून मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद जी ने एक बड़ी बात कही की इस बिल को राजनिति चश्मे से नहीं इन्साफ के तराजू में रख कर देखे तो इस बिल की अहमियत समझ में आ सकती हैं इसमें कोई भी वोट वोट बैंक की राजनीति नहीं हैं उन मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा जो इसका दर्द भोग रही हैं और इन्साफ के लिए सरकार की तरफ देख रही हैं , न्यायपालिका के दरवाजे की तरफ निहार रही हैं कब इन्साफ मिलेगा ? एक बड़ा सवाल ये भी हैं की मुस्लिम पर्सनल बोर्ड इसे अपने अधिकारों में दखलंदाज़ी मानता है जबकि कुरआन में भी इसका कोई जिक्र नहीं हैं बहुत से मुस्लिम देशों ने भी इस कुरीति की मानते हुए इस पर सख्त कानून बनाये हैं एक बात और भी सोचनीय हैं की यदि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड द्वारा पीड़िता को इन्साफ मिला होता तो सरकार को इस तरह के कानून को लाने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती |
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश होने के कारण यहाँ किसी भी धर्म,जाति,लिंग के आधार पीड़िता / पीड़ित को यदि इन्साफ नहीं मिलता हैं तो भारतीय कानून के तहत नायालय में इन्साफ के लिए गुहार लगा सकता हैं|
इन्साफ मिलना-इंसान का मौलिक अधिकार हैं तीन तलाक के बिल के पीछे सरकार ने स्पष्ट कर दिया मुस्लिम पुरुष को इसमें अपराधी बनाने जैसी कोई भी मंसा नहीं हैं लेकिन पीड़िता के साथ सही इन्साफ मिले इसके तहत मजिस्ट्रेट को अपने विवेक के आधार और परिवार को टूटने से बचाने के अंतिम प्रयाश की गुंजाईश बरकरार रखने का अधिकार हैं | सभी दलों को इस बिल के बारे में राजनीतक चश्मे से देखने के बजाये मंथन करना होगा | और ये आपसी चर्चा का विषय हो सकता हैं लेकिन उसे पहले ३ तलाक के मुद्दे पर पीड़िता को इन्साफ मिले | अन्यथा पीड़ित मुस्लिम महिला की भवनाओं के दर्द को समझे उसके साथ ही साथ उसके परिवार और बच्चों के बारे में भी सोचना होगा यदि इन सभी मुद्दों को सोचने समझने की शक्ति नहीं हैं तो राजनीतिज्ञों की सोच को दिवालियापन ही कहा जायेगा | अब देखना ये हैं की राज्यसभा में इस बिल को एतिहासिक जीत मिलती हैं की नहीं, यदि ये बिल राज्यसभा में नहीं पास होता हैं तो इन पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के दर्द और पीड़ा का जिम्म्मेदार कौन होगा ये अहम सवाल देश के सामने होगा | यदि इस बिल की मंजूरी मिल जाती हैं सभी मुस्लिम देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया को संदेस जायेगा की भारत महिलओं के सम्मन में और उसके अधिकारों के लिए वचनबद्ध हैं इतिहास में भारत की गरिमा सम्मनित हो जाएगी भारत में सभी के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु भारत सरकार कटिबद्ध हैं |
