शाही स्नान महानिर्वाणी अखाड़ा: कुम्भ २०१९
15/01/2019 प्रयागराज :साहिल बी श्रीवास्तव [फिल्म लेखक व् निर्देशक की कलम ] कुम्भ २०१९ उत्तर परदेश १५ व से चलें वाला कुम्भ मेला ४ मार्च तक अनारत चलता रहेगा इस वर्ष मकर संक्रांति पौष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को पड़ेगी। 14 को रात्रि में तथा 15 जनवरी को उदय तिथि पड़ने के कारण मकर संक्रांति 15 को ही मनाई जानी चाहिए। मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी मंगलवार प्रातःकाल सुबह ५ बजे से सूर्यास्त तक पहला शाही स्नान हैं 6.05 बजे महानिर्वाणी के साधु–संत पूरे लाव–लश्कर के साथ शाही स्नान को संगम तट पर पहुंचे। इसके साथ अखाड़ों के स्नान का क्रम प्रारंभ हुआ। सभी अखाड़ों को बारी–बारी से स्नान के लिए 30 मिनट से 45 मिनट तक का समय दिया गया है। कड़ाके ठण्ड पारा 10 डिग्री सेल्सियस से भी कम होने के बाद भी बड़ी तादाद में लोग डुबकी लगा रहे हैं।
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुम्भ मेले की गर्मी का जोश प्रयागराज के पग–पग पर अपने रंग में नजर आने लगा है। पहले शाही स्नान पर्व पर अखाड़ों के नागा संन्यासियों, महामंडलेश्वरों, साधु–संतों सहित लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में पुण्य की डुबकी लगाकर कुंभ का श्रीगणेश कर दिया। गंगा यमुना और सरस्वती तीनों के संगम स्थल पर नागा साधुओं और फिर अन्य अखाड़ों के साधु व संतों के शाही स्नान के बाद श्रद्धालुओं का संगम तट पर डुबकी लगाने का सिलसिला जारी है।
मंगलवार को सुबह 5 बजे से शुरू स्नान पूरे दिन जारी रहेगा।
साधु–संतों के साथ आम श्रद्धालु भी संगम सहित अलग–अलग घाटों पर आधी रात से स्नान कर रहे हैं। कड़ी सुरक्षा के बीच घाटों पर नहाने और पूजा पाठ का सिलसिला जारी है। स्कन्द पुराण में कुम्भ मेले के आयोजन का उल्लेख आता है इसका उल्लेख निचे दिए श्लोक में वर्णित हैं
चन्द्रः प्रश्रवणाद्रक्षां, सूर्यो विस्फोटनाद्दधौ। दैत्येभ्यश्च गुरु रक्षां, सौरिंर्देवेन्द्रजाद् भयात्।।
सूर्येन्दुगुरूसंयोगस्य, यद्राशौ यत्र वत्सरे। सुधाकुम्भप्लवे भूमौ, कुम्भो भवति नान्यथा।।
अर्थात् जिस समय अमृतपूर्ण कुंभ को लेकर देवताओं एवं दैत्यों में संघर्ष हुआ उस समय चंद्रमा ने उस अमृत कुंभ से से अमृत के छलकने की रक्षा की और सूर्य ने उस अमृत कुंभ के टूटने से रक्षा की। देवगुरु बृहस्पति ने दैत्यों से रक्षा की और शनि ने इंद्रपुत्र जयंत के हाथों से इसे गिरने नहीं दिया। इसलिए देवताओं और राक्षसों की लड़ाई के दौरान जिन–जिन जगहों पर (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, नासिक) और जिस–जिस दिन सुधा का कुंभ छलका, उन्हीं–उन्हीं स्थलों में उन्हीं तिथियों में कुंभपर्व का आयोजन होता है।
कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्यकाल (664 ईसा पूर्व) में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेंगसांग ने अपनी भारत यात्रा का उल्लेख करते हुए कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया है। साथ ही साथ उसने राजा हर्षवर्द्धन की दानवीरता का भी जिक्र किया है। ह्वेंगसांग ने कहा है कि राजा हर्षवर्द्ध हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे, जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों में दान दे देते थे
