कांग्रेस-आलोक वर्मा -भाजपा महाभारत
12/1//2019 मुंबई : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की एक लम्बी बैठक में सर्व समिति से ये फैसला लिया गया की आलोक वर्मा को गुरुवार को सी.बी.आई. निदेशक पद से हटा दिया गया इसके तुरंत आलोक वर्मा ने इस्तीफ़ा दे दिया है. गुरुवार रात आलोक वर्मा को
सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटाकर डायरेक्टर जनरल फायर सर्विसेज बना दिया गया था.
कांग्रेस आलोक वर्मा को सामने रख कर भाजपा सरकार पर हर तरह का निशाना साध रही हैं कोई ऐसा मौका नही छोड़ रही हैं जिसे सरकार के लिए मुश्किलें ज्यादा ज्यादा खड़ी की जाये इसके पीछे कारण क्या हैं
आलोक वर्मा को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दल आक्रामक रुख में आ गयी हैं | भारतीय राजनीति में शायद ये पहली बार हो रहा हैं किसी सीबीआई निदेशक पद के साथ देश में राजनीति की जा रही हैं इसके पीछे के कारण का विश्लेष्ण करना भी जरुरी हैं |
आलोक वर्मा के उपर जो आरोप हैं उन तथ्यों को समझना जरुरी हैं कही ऐसा तो नहीं आलोक वर्मा सीबीआई के पद में रहते हुए कुछ भगोड़े अपराधियों या कारोबारी की छुपी कहानी तो नहीं हैं |
जबकि अलोक वर्मा को सीबीआई का डायरेक्टर बनाने वाली कैबिनेट कमिटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जेएस खेहर शामिल थे। आलोक वर्मा को लेकर विवाद के तीर कहा हैं कही तो अंदर की बात हैं जो आम जनता के समझ में नहीं आ रहा हैं |
मोइन कुरैशी मीट कारोबारी है ये ही वो कारोबारी हैं जिसने दो शीर्ष सी.बी.आई. के अफसर डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना हैं। दोनों अफसरों को बीच घमासान मचा और सरकार ने इनको छुट्टी पर भेज दिया है और अंतरिम डायरेक्टर के तौर पर एम. नागेश्वर राव को नियुक्त किया है।
अलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के रिश्ते तभी से विवाद उत्पन्न हो गया दोनों ने स्पेशल डायरेक्टर पद पर नियुक्ति को लेकर आपत्ति जताई | राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सेक्रटरी से वर्मा की शिकायत की और उनपर कुरैशी के करीबी सहयोगी सतीश बाबू सना से 2 करोड़ रुपये रिश्वत लेने का भी आरोप लगाया। 15 अक्टूबर को सीबीआई ने अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप में केस दर्ज किया।
मोदी सरकार ने इस विवाद को कण्ट्रोल करने के लिए सी.बी.आई. डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया और जैसे ही इनको छुट्टी पर भेजा गया और विवाद गहरा गया है। और कोंग्रेस ने इस बात को मुद्दा बना लिया |
सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर केस दर्ज किया है। एफ.आई.आर में उन पर मांस कारोबारी मोइन कुरैशी से 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप दर्ज किया गया |
कांग्रेस ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थान और मोदी सरकार के इसी विवाद का फायदा उठाने के लिए आलोक वर्मा के माध्यम से राफेल के मुद्दे को हवा दे दी हैं सरकार राफेल की सच्चाई सामने नहीं ला पायेगी |
ये भी आरोप आलोक वर्मा पर हैं विजय माल्या और नीरव मोदी को भारत से भगाने में मदद की हैं कही ऐसा तो नहीं कांग्रेस सरकार में दिए गए इन कारोबारियों के क़र्ज़ की सच्चाई सामने आ जाएँ | इसीलिए आलोक वर्मा को सी.बी.आई निदेशक पद की नियुक्ति में मलिकार्जुन खड्गे ने बड़ी भूमिका निभाई थी |
एक तीर दो निशाना साधा गया हैं हो सकता है कांग्रेस के इशारे से विजय माल्या और नीरव मोदी को भारत से भागने में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने अनदेखी की हो और ये दोनों अपराधी भाग भी गए कांग्रेस की भूमिका विजय माल्या और नीरव मोदी से क्या फायदे हुए उसका कभी खुलासा ही न ही पाए | विजय माल्या और नीरव मोदी के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस लागू कर दिया गया ये अपराधी कभी भी भारत आ सकते हैं |
मोदी सरकार इन अपराधियों को भारत लाने में सफल हो जाती हैं नरेंद्र मोदी द्वारा अपने सभा में बार बार कहा की एक भी अपराधी जो भारत से भगोड़ा हैं उसे देश की जेलों में सड़ना होगा |उन अपराधियों के आने से जो सच्चाई सामने आये उसे कांग्रेस के लिए लोकसभा २०१९ के चुनाव में भूकंप आ सकता हैं इस लिए देश का ध्यान भटकाने के लिए राफेल और आलोक वर्मा को निशाना बना कर सरकर को उलझाये रखना चाहती हैं मोदी सरकार इस कांग्रेस की चाल को भली–भाती समझ रही हैं इसलिए मोदी सरकार ने सी.बी.आई. के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को एजेंसी के अंतरिम प्रमुख नियुक्त कर देश के सामने सच्चाई लाने की कोशिश हैं |
आलोक वर्मा के बारे में जानना भी जरुरी हैं क्या रहा इनके कार्य काल का चक्र ये इनका जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार पिता जे.सी वर्मा के घर दिल्ली में 14 जुलाई 1957 आयु (वर्ष 2018 अनुसार) दिल्ली में हुआ था इनकी शिक्षा दीक्षा स्कूली पढाई सेंट जेवियर्स स्कूल दिल्ली और कॉलेज सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से ही एम.ए इतिहास में किया
अरुणाचल प्रदेश–गोवा–मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश काडर से 1979 बैच के IPS ऑफिसर के एजीएमयूटी कैडर के आलोक वर्मा सीबीआई के 27वें डायरेक्टर हैं। वह देश की राजधानी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं। वह जब आईपीएस के लिए सेलेक्ट हुए थे तो सिर्फ 22 साल के थे। वह अपने बैच के सबसे युवा ऑफिसर थे। दिल्ली का कमिश्नर बनने से पहले वह जेल के जनरल रह चुके थे, मिजोरम के डीजी रह चुके थे। नैशनल कैपिटल रीजन में महिला पीसीआर शुरू करने का श्रेय भी जाता हैं आईपीएस अधिकारी अलोक वर्मा को भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोप में पद से हटाया गया। इसके साथ ही एजेंसी के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले वह सीबीआई के पहले प्रमुख बन गए हैं। एक नजर आलोक वर्मा की उपलब्धियों पर लिखना जरुरी हैं |
कैडर : अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश
प्रमुख नियुक्तियां : सहायक पुलिस आयुक्त, दिल्ली (1979), पुलिस के अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर, दिल्ली (1985), पुलिस उपायुक्त, दिल्ली (1992), पुलिस महानिरीक्षक, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (2001), संयुक्त पुलिस आयुक्त, दिल्ली (2004), पुलिस के विशेष आयुक्त, अपराध और रेलवे (2007), पुलिस महानिदेशक, पांडिचेरी (2008), पुलिस के विशेष आयुक्त, खुफिया, दिल्ली (2012), पुलिस महानिदेशक, मिजोरम (2012), पुलिस महानिदेशक, तिहाड़ जेल (2014), पुलिस आयुक्त, दिल्ली (2016), निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो (2017)
पुरस्कार/सम्मान : पुलिस पदक (1997), विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक (2003)
विवाद : 24 अगस्त 2018 को, सीबीआई के कमांडर राकेश अस्थाना ने अलोक वर्मा पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया। हालांकि, अक्टूबर 2018 में, राकेश पर भी भ्रष्टाचार, आपराधिक षड्यंत्र और आपराधिक दुर्व्यवहार के आरोप में एजेंसी द्वारा मामला दर्ज किया गया था।
दिल्ली में रहते हुए प्रमोशन को लेकर कई नीतियों में बदलाव किए गए। नतीजतन 11,371 कॉन्स्टेबल हेड कॉन्स्टेबल, 12,813 हेड कॉन्स्टेबल असिस्टेंट सब–इंस्पेक्टर, 1792 ASI सब–इंस्पेक्टर और 390 सब–इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर बना दिए गए। उन्हें 1997 में पुलिस मेडल और 2003 में राष्ट्रपति के पुलिस मेडल से सम्मानित किया जा चुका |
[ फिल्म लेखक–निर्देशक साहिल बी श्रीवास्तव की कलम ]
