‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर‘ : मनमोहन सिंह की फिल्म पर राजनीति
मुम्बई : फिल्म लेखक व् निर्देशक : साहिल बी श्रीवास्तव की कलम )भूतपूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का ट्रेलर रिलीज़ होते ही राजनीति के गलियारे में भूचाल मच गया हैं ये चर्चा का विषय इस लिए बन गया हैं की फिल्म के लेखक संजय बारू के किताब पर आधारित है जो मनमोहन सिंह जी के सलाहकार रहे हैं | कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने सफलता पूर्वक दस साल सरकार में बने रहे लेकिन एक खामोश प्रधानमंत्री के रूप में, भारतीय राजनीति की बात की जाये किसी ऐसे प्रधानमंत्री की बात की जा रही हैं देश ने एक ‘ एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के रूप देखा हैं उस समय की राजनीति में कही भी भारतीय राजनीति में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के दौड़ में दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे थे| लेकिन देश ने प्रधानमन्त्री के रूप में इन्हें स्वीकार कर लिया | देश की बागडोर दस सालों तक कांग्रेस पार्टी ने मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली सरकार चलायी | कहा तो यह भी जाता हैं की भारतीय राजनीति का खामोश प्रधानमंत्री या रिमोट द्वारा संचालित प्रधानमंत्री की संज्ञा से प्रचारित भी किया जाता रहा हैं |
फिल्म प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जिंदगी पर एक विश्लेष्ण हैं इस फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर‘ के निर्माता / निर्देशक / लेखक और अनुपम खेर द्वारा अभिनित मनमोहन सिंह के किरदार को आत्मसात कर देने वाले अभिनय का फिल्माकंन फिल्म के ट्रेलर में बड़ी खूबसूरती से दिखाने की सार्थक कोशिश की गयी हैं | सभी की मेहनत भी दिखाई देती हैं |
फिल्म का चर्चित होना तो निश्चित था फिल्म के प्रदर्शन की तारीख 11 जनवरी 2019 को तय की गयी हैं कोई विवाद नहीं हुआ तो फिल्म अपनी तय तारीख के दिन ही रिलीज़ होगी |
भारतीय जनता पार्टी के समर्थक अभिनेता अनुपम खेर ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के किरदार में जिवंत अभिनय की छवि झलकती हैं इस कहानी को लेकर कांग्रेस पार्टी को डर सता रहा हैं कही फिल्म कांग्रेस की छवि ना ख़राब कर दे | इसका नकारत्मक खामियाजा न भुगतना पड़े इसीलिए ट्रेलर के आते ही कांग्रेस पार्टी की तरफ से विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं |
कांग्रेस की तरफ से ये राग अलाप किया जा रहा हैं की भारतीय जनता पार्टी फिल्म के माध्यम से दुष्प्रचार करने की कोई रणनीति तो नहीं कर रही हैं कही ऐसा तो नहीं आम चुनाव होने से पहले भाजपा सरकार आम जनता का ध्यान कही और भटकाने की कोई नीति तो अपना नहीं रहीं हैं |
फिल्म के ट्रेलर के रिलीज़ होते ही महारास्ट्र यूथ कांग्रेस ने फिल्म प्रदर्शन को लेकर अपनी मांग रखी हैं की फिल्म में से आपतिजनक सीन हटाये जाये अन्यथा फिल्म का प्रदर्शन को भारत में कही भी रिलीज़ नहीं होने दिया जायेगा | जितनी तेजी से स्वर मुखर हुए थे यूथ कांग्रेस की आवाज़ भी खमोश हो गयी, हो सकता हैं अलाकमान ने निर्देशित किया हो इस फिल्म को विवादित न किया जाये | फिल्म के ट्रेलर में कुछ सवांद ने 2019 के चुनावी मौसम में चर्चा का विषय हो सकता हैं सभी राजनातिक पार्टी इस सवांद को अपने–अपने तरीके से भुनाने की कोशिश कर सकती हैं |
फिल्म में अनुपम खेर जी के अभिनय और आवाज़, बॉडी लेंग्वेज की तारीफ मिलने लगी हैं लगता हैं मनमोहन सिंह जी का किरदार जीवंत हो सा गया हैं फिल्म के लेखक संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना अभिनीत कर रहे हैं |सवांद इतने सटीक हैं चुटीले हैं जो सीधे –सीधे अपनी बात कह देते हैं कम शब्दों में जिनका जिक्र करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी हैं जैसे: सवांद पर नजर डालते हैं :-
- : सवांद :- मुझे तो डॉक्टर साहेब भीष्म जैसे लगते हैं. जिनमें कोई बुराई नहीं है. पर फ़ैमिली ड्रामा
के विक्टिम हो गए
२) सवांद :- मुझे कोई क्रेडिट नहीं चाहिए. मुझे अपने काम से मतलब है. क्योंकि मेरे लिए देश पहले
आता है.‘मैं इस्तीफ़ा देना चाहता हूं.‘
३) सवांद :-एक के बाद एक करप्शन स्कैंडल. इस माहौल में राहुल कैसे टेकओवर कर सकता है.
४ ) : सवांद :- 100 करोड़ की आबादी वाले देश को कुछ गिने-चुने लोग चलाते हैं. ये देश की कहानी
लिखते हैं.
५ ) सवांद :- न्यूक्लियर डील की लड़ाई हमारे लिए पानीपत की लड़ाई से भी बड़ी थी
६ ) सवांद :- पूरे दिल्ली के दरबार में एक ही तो ख़बर थी कि डॉक्टर साहेब को कब कुर्सी से हटाएंगे
और कब पार्टी राहुल जी का अभिषेक करेगी.
७ ) सवांद :- महाभारत में दो परिवार थे. इंडिया में तो एक ही है.
फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर‘ के लेखक संजय बारू के किरदार को अक्षय खन्ना फिल्म में अभिनीत कर रहे हैं लेकिन संजय बारू हैं कौन ? हम आपको उनका परिचय न दे तो बड़ी बेमानी सी बात हो जाएगी आइये जानते हैं उनके बारे में संजय बारू साल 2004 से 2008 के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे
संजय बारू की किताब का जब विमोचन हुआ था तब भी विवाद बना रहा और 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यलय ने इस किताब की आलोचना की थी प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक वक्तव्य जारी कर ये चेतावनी भी थी की संजय बारू अपने पद का दुरुपयोग करके आर्थिक फायदा उठाने का प्रयाश कर रहे हैं लेकिन अब इस फिल्म से संजय बारू दो निशाना साधने की कोशिश सी दिखयी देती हैं फिल्म आर्थिक रूप से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए साथ ही साथ उनके लेखन का मूल्यांकन भी हो जाये और अपनी लेखनी की तेज़ धार का कोई मौका भी नहीं चुकना चाहते हैं जैसा वो दावा कर रहे हैं |
फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टरः द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ़ मनमोहन सिंह’ में संजय बारू ने दावा किया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री सिंह ने उनसे कहा, “किसी सरकार में सत्ता के दो केंद्र नहीं हो सकते. इससे गड़बड़ी फैलती है. मुझे मानना पड़ेगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र हैं. सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है. “जून 2004 कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सत्ता त्याग देना अंतरआत्मा की आवाज़ सुनने का नतीजा नहीं था बल्कि एक राजनीतिक क़दम था.जो उस समय लिया गया था और मनमोहन सिंह को तब प्रधानमंत्री बनाने का सौभग्य प्राप्त हुआ लेकिन सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी और सभी सामाजिक सुधारों के कार्यक्रमों की पहल करने का श्रेय उसे ही दिया जाता था |
एक कांग्रेसी नेता को फिल्म के ट्रेलर पर आपत्ति हैं कांग्रेस के महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष सत्यजीत टाम्बे ने फिल्म के निर्माता और निर्देशक को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. पहले इस फिल्म को कांग्रेस के नेताओं को फिल्म दिखाई जाये वो हरी झंडे देगे तब इस फिल्म का प्रदर्शन किया जाये, वर्ना कोर्ट के दरवाजे खटखटाएगी.
2019 लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज होने जा रही इस फिल्म के ट्रेलर ने राजनीतिक महकमे में हलचल पैदा कर दी है फिल्म का ट्रेलर करीब 2.43 मिनट का है. ट्रेलर मनमोहन सिंह की भूमिका निभा रहे अनुपम खेर से शुरू होता है. संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना निभा रहे हैं. वे बताते हैं- “मुझे तो डॉ. साहब (मनमोहन सिंह) भीष्म जैसे लगते हैं. जिनमें कोई बुराई नहीं है. पर फैमिली ड्रामा के विक्टिम हो गए. महाभारत में दो फैमिलीज थीं, इंडिया में तो एक ही है.”
भारतीय सिनेमा की एक बड़ी विडम्बना ये हैं की जब भी किसी की बायोपिक फिल्म / ऐतिहासिक फिल्म / राजनातिक विषयों पर फिल्म का निर्माण होता हैं देश की राजनीति में हलचल होने लगती हैं सभी राजनैतिक पार्टी या संघटन इन फिल्मों के सकारत्मक पहलूवों कलात्मक पक्ष की सराहना नहीं करता सिर्फ अपने राजनितिक हित के लिय कुछ भी करने लिए मन बना लेता हैं फिल्म विरोध करना, फिल्म प्रदर्शन से रोकना ये अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ बैठते हैं | कभी भी ये सोचने की फुर्सत नहीं होती की फिल्म के निर्माता / निर्देशक / कलाकार / टेक्निकल टीम / लाखो लोग जिस फिल्म से सम्बन्धित सभी के रोजगार पर प्रश्नचिह खड़ा हो जाता हैं |इस तरह की फिल्मो का स्वागत हो तो लाखों लोगो को रोजगर का अवसर मिलता रहेगा |
आज की युवा पीढ़ी सिनेमा के माध्यम से आसानी से ऐसे विषयों समझ सके जीवन कुछ सिख लेने का सहज माध्यम बन सकता हैं |
सिनेमा का विरोध करने से पहले ये भी सोचना होगा की भारत सरकार द्वार फिल्म सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारी को बहुत ही खूबसुरती से निभाता हैं यदि किसी को आपत्ति हैं तो सेंसर बोर्ड से शिकायत कर सकता | लेकिन जब विरोध का मन हो तो कौन नियमों की परवाह करता हैं |
यहाँ तो सभो को अपनी-अपनी राजनीति चमकानी हैं अब देखना होगा फिल्म के रिलीज़ 11 जनवरी 2019 में कड़कड़ाती ठंड में चुनाव् से पहले फिल्म के माध्यम से क्या मौसम में गर्मी आती है | फिलहाल तो ट्रेलर लॉन्च के साथ ही विवाद भी होने शुरू हो गए|
