देश में आज धनतेरस या धनत्रयोदशी का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में धनतेरस की पूजा होती है। इस दिन माता लक्ष्मी, कुबेर और धनवंतरी की भी पूजा होती हैं। धनतेरस के दिन लोग सोने, चांदी के सिक्के, आभूषण और बर्तनों की खरीदारी करते हैं। इस दिन सोने,चांदी के आभूषण या सिक्के खरीदना भी काफी शुभ होता है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है,संपन्नता आती है और माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। दिवाली से ठीक पहले लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखने के लिए रोशनी और दीयों से सजाते हैं।
धनतेरस शुभ मुहूर्त और भगवान धन्वंतरि की पूजा का समय
धनतेरस शनिवार, 22 अक्टूबर को शाम 6.02 बजे शुरू होगा और 23 अक्टूबर रविवार शाम 6.03 बजे समाप्त होगा। कार्तिक कृष्ण की रात्रि में त्रयोदशी तिथि पर भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी सहित भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। शास्त्रों में भी प्रदोष काल की त्रयोदशी की पूजा करने का विधान है। धनतेरस का शुभ मुहूर्त 21 मिनट तक चलेगा धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। धनतेरस आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि की जयंती है। इस दिन घर के बाहर मृत्यु के देवता के लिए एक दीपक जलाया जाता है। धनतेरस पर पूजा करने के अलावा शुभ वस्तुओं की खरीदारी का भी विधान है।
इतिहास और महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, धनतेरस कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस के अवसर पर आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे। लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार धन्वंतरि का उदय तब हुआ जब देवों और असुरों ने समुद्र मंथन किया। उन्हें देवताओं का चिकित्सक और विष्णु का अवतार माना जाता है। धनतेरस पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और दिवाली की तैयारी करते हैं। वे शाम को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। लोग इस दिन अपने घरों को लालटेन और दीयों से सजाते हैं। धनतेरस को एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि यह दिवाली के शुभ त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है।
इसलिए मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र से प्रकट हुए, वह कार्तिक के महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए, इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा जारी है। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का एक हिस्सा माना जाता है और यह वह है जो पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार करता है। भगवान धन्वंतरि के बाद देवी लक्ष्मी दो दिनों के बाद समुद्र से निकलीं, इसलिए इस दिन दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इनकी पूजा करने से स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है।
चिकित्सा विज्ञान का किया था प्रचार
स्वास्थ्य को भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी संपत्ति माना जाता है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और उन्हें दुनिया में औषधि का प्रसार करने वाला माना जाता है। इस दिन, प्रवेश द्वार के सामने छत की रोशनी जलाने की प्रथा है। धनतेरस इसके दो शब्दों से मिलकर बना है। पहले धन, फिर तेरस, जिसका अर्थ है तेरह गुना अमीर। वैद्य समाज इस दिन को भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण धन्वंतरि जयंती के नाम से मनाता है।
धनतेरस पर इन वस्तुओं की भी होती है खरीदारी
धनतेरस के अवसर पर लोग झाड़ू खरीदना शुभ होता है क्योंकि झाड़ू को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। झाड़ू नकारात्मकता को दूर करके घर में सकारात्मकता को बढ़ाती है। जहां पर साफ सफाई होती है, वहां लक्ष्मी का वास होता है। झाड़ू के अलावा आप लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, माता लक्ष्मी के पद चिह्न आदि भी खरीद सकते हैं। लोग धनतेरस के अवसर पर सोना, चांदी, आभूषण, बर्तन, वाहन, मकान, प्लॉट आदि की खरीदारी करते हैं।
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