देश की मुसलमान महिलाओं को समानता का अधिकार देता तीन तलाक विधेयक एक बार फिर लोक सभा में पास हो गया है. मोदी सरकार के इस बिल को लेकर प्रयासों का नतीजा रहा कि विपक्ष के सुझावों को शामिल करते हुए ये बिल लोक सभा से अपनी नई शक्ल में फिर पास हो गया है लेकिन क्या इस बिल की राह राज्य सभा में आसान होगी? चर्चा के दौरान जो पार्टियां इसके विरोध में रही उनका कहना है कि इस अपराध को क्रिमिनल क्यों बनाया गया है?
मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने और मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत पर रोक लगाने के मकसद से लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ लोक सभा से पारित हो गया है. दिन भर चली चर्चा के बाद शाम को इस पर मतदान हुआ जिसके बाद इसे पारित कर दिया गया.
इससे पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को चर्चा एवं पारित कराने के लिए लोकसभा में रखा. कानून मंत्री ने इसे महिलाओं के न्याय एवं सम्मान का विषय करार देते हुए कहा कि विधेयक सियासत, धर्म, सम्प्रदाय का प्रश्न नहीं है बल्कि यह ‘नारी के सम्मान और नारी-न्याय’ का सवाल है और हिन्दुस्तान की बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी इस पहल का सभी को समर्थन करना चाहिए.
तमाम दलों के नेताओं ने सदन में हुई चर्चा में भाग लिया और बिल पर अपनी बात रखी. ज्यादातर दलों ने विधेयक का समर्थन किया, हालांकि कांग्रेस समेत कुछ दलों ने कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई.
इस बार सरकार ने विधेयक में कई बदलाव किए हैं. इस बार मजिस्ट्रेट से जमानत मिलने का प्रावधान किया गया है. तीन तलाक मामले में दर्ज प्राथमिकी तभी संज्ञेय होगी, जब उसे पत्नी या उसका कोई रिश्तेदार दर्ज कराएगा. पति-पत्नी से बातचीत कर मजिस्ट्रेट मामले में समझौता करा सकता है.
चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने कहा कि विधेयक को सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.
लोक सभा से पास होने के बाद अब बिल की असली चुनौती राज्य सभा से पास कराना है, जहां वो पहले भी अटक गया था.
