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राजकीय सम्मान के साथ सुषमा स्वराज का अंतिम संस्कार

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का पार्थिव शरीर बुधवार को पंचतत्व में विलीन हो गया. नम आंखों के साथ हज़ारों लोगों ने अपनी प्रिय नेता को आखिरी विदाई दी. दिल्ली स्थित लोधी रोड शवदाह केंद्र पर तमाम हस्तियों की मौजूदगी में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार की रस्मों को उनकी बेटी बांसुरी स्वराज ने पूरा किया.
सुषमा को आखिरी विदाई देने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, लालकृष्ण आडवाणी, मोदी कैबिनेट के तमाम अन्य सदस्यों समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और जानी-मानी हस्तियां मौजूद रहीं.
दिल का दौरा पड़ने से सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में मंगलवार रात निधन हो गया था. निधन से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने ट्वीट कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी थी और कहा था कि वह अपने जीवन में इस दिन को देखने का इंतजार कर रही थीं.
उन्होंने 2016 में खुद ट्वीट के जरिए जानकारी दी थी कि उनकी किडनी खराब हो गई है और तभी से वो लगातार बीमार चल रही थीं. उनकी किडनी भी ट्रांसप्लांट की गई थी. सेहत खराब होने के कारण ही उन्होंने 2019 का लोक सभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. छह बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा से सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज न सिर्फ आम जीवन में बल्कि सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव और आम लोगों के बीच लोकप्रिय थीं. मोदी सरकार में विदेश मंत्री बनने से पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वो सूचना एवं प्रसारण मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री थीं.
हरियाणा के अंबाला से राजनीतिक सफर शुरू करने वाली सुषमा स्वराज का दिल्ली से गहरा नाता रहा है. वह दिल्ली की मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं. मुख्यमंत्री बनने से पहले वह दो बार दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बनी थीं. बाद में वह दिल्ली की सियासत से दूर चली गईं, लेकिन यहां के भाजपा कार्यकर्ताओं से उनका नजदीकी संबंध बना रहा.
सुषमा पहली बार दिल्ली के रास्ते लोकसभा पहुंची थीं. पार्टी ने उन्हें 1996 के लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल को पराजित किया था. उन्हें 13 दिनों की वाजपेयी सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया गया था.
मार्च 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने फिर से उन्हें दक्षिणी दिल्ली सीट से मैदान में उतारा. वह कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन को हराकर दूसरी बार लोकसभा पहुंचीं और उन्हें एक बार फिर से सूचना व प्रसारण मंत्री की जिम्मेदारी दी गई. इसके साथ ही उन्हें दूरसंचार विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. लेकिन उसी वर्ष 13 अक्टूबर को उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री बना दिया गया. इसके बाद पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह दिल्ली की सत्ता में भाजपा की वापसी कराने में असफल रहीं. विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय के बाद वह तीन दिसंबर, 1998 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 53 दिनों तक दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद वह केंद्र की सियासत में वापस लौट गईं.
बेसक वह दिल्ली की चुनावी राजनीति से दूर चली गईं लेकिन दो बार सांसद और मुख्यमंत्री रहने की वजह से यहां के कार्यकर्ताओं के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव हो गया और जीवन के आखिर तक वह उनसे जुड़ी रहीं. प्रत्येक चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के लिए वह बढ़-चढ़कर चुनाव प्रचार करती थीं और किसी भी तरह के परामर्श के लिए कार्यकर्ता भी बेहिचक उनके पास पहुंच जाते थे.

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