हिंदी फिल्मों को अपने सुनहरे संगीत से सजा कर उन्हें अमर बना देने वाले प्रख्यात संगीतकार खय्याम को मंगलवार देर शाम सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया. पद्म भूषण से सम्मानित खय्याम को मुंबई के एक कब्रिस्तान में पूरे राजकीय सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया. इस मौके पर बॉलीवुड की तमाम हस्तियां मौजूद रहीं. लोगों ने नम आंखों से उन्हें विदाई दी.
इससे पहले खय्याम साहब के अंतिम दर्शन के लिए उनके निवास स्थान पर पहुंचने वालों का तांता लगा रहा. खय्याम साहब के अंतिम दर्शन के लिए और उन्हें श्रध्दांजलि देने के लिए गुलजार साहब, जावेद अख्तर, विशाल भारद्वाज, एक्ट्रेस पूनम ढिल्लन, एक्टर रजा मुराद, सिंगर सोनू निगम, उदित नारायण, जतिन पंडित सहित बॉलीवुड के कर्इ सितारे उनके निवास स्थान पर पहुंचे.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सुरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर समेत कई अन्य लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया और इसे एक संगीतमय युग का अंत बताया.
फेफड़े में संक्रमण के चलते खय्याम को 10 दिन पहले भर्ती कराया गया था. सोमवार रात करीब साढ़े नौ बजे उन्होंने आखिरी सांस ली.
पंजाब में जन्मे खय्याम ने संगीतकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘हीर रांझा’ से की थी. खय्याम ने कभी-कभी, उमराव जान, त्रिशूल, नूरी, बाजार, रजिया सुल्तान जैसी फिल्मों के संगीत दिया. ‘इन आंखों की मस्ती के’, ‘बड़ी वफा से निभाई हमने…’, ‘फिर छिड़ी रात बात फूलों की’ जैसे गीत रचने वाले खय्याम ने अनेक शानदार गीत लिखे.
खय्याम ने पहली बार फिल्म ‘हीर रांझा’ में संगीत दिया लेकिन मोहम्मद रफी के गीत ‘अकेले में वह घबराते तो होंगे’ से उन्हें बॉलीवुड में पहचान मिली. इसके बाद फिल्म ‘शोला और शबनम’ ने उन्हें संगीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया.
1977 में ‘कभी कभी’ और 1982 में ‘उमराव जान’ के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. साल 2010 में उन्हें फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया. इसके अलावा साल 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी, पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. 2011 में उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. खय्याम ने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया.
