“विफल हुए सबके जतन जब बचा ना कोई उपाय अब करेंगे फैसला तीर धनुष तलवार” महाभारत में ये पंक्तियां कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा था। वर्तमान में देश की परिस्थिति भी कुरुक्षेत्र के मैदान जैसी हो गई है और राजनीतिक हालात एक नए महाभारत की ओर दर्शा रही है। इसलिए जरूरी है हम जान ले कि वो कौन सी बातें है जो आज महाभारत से एकदम मेल खाती हैं।भारत के इतिहास की सबसे पौराणिक गाथा में से एक महाभारत केवल कुरुक्षेत्र की लड़ाई के लिए नहीं जानी जाती है, पर इस गाथा की हर बात आज के दिन भी मानवजाति के जीवन को प्रेरणा देती है और बहुत से बातों का संदेश देती है।
महाभारत में जहा एक ओर कौरव अधर्मी और अन्याई दुराचारी थे, तो पांडव धर्म के साथ थे। चचेरे भाई होने के बावजूद दुर्योधन और समस्त कौरवों ने पांडवों को अपना दुश्मन समझा। केवल प्रताड़ना ही नहीं किन्तु पांडवो को समाप्त करने की साज़िश भी रची।बचपन में चाहे भीम को नदी में डूबा के मारने की साज़िश हों या लाक्षाग्रह कांड कर के समस्त पांडव परिवार को अग्नि में भस्म करने की कोशिश हो। यह सभी षड्यंत्र किए गए। यह सब होने के बावजूद भी पांडवो ने कभी कौरवों को अपना दुश्मन नहीं माना, खास तौर पे पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने सदैव अपने कौरव भाइयों को क्षमा किया।परन्तु बात यही नहीं रुकी, कुलवधु द्रौपदी को भरे सभा में निर्वस्त्र करने की नीच हरकत भी की गई, और जब कुरुक्षेत्र की लड़ाई से पहले स्वयं भगवान कृष्ण पांडवो की ओर से अंतिम शांति प्रस्ताव लेकर गए तो अहंकारी दुर्योधन ने उन्हें भी बंदी बनाने की कोशिश की।
यह सब सहने के बावजूद भी, बीच रणभूमि में पराक्रमी अर्जुन को युद्ध लड़ने के लिए शंका होने लगी और दिल में अपने कौरव भाइयों के लिए करुणा के भाव बहने लगे। तब जा के कृष्ण भगवान ने गीता का उपदेश दिया और अर्जुन को धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करने को चेताया। पर करुणा का वो भाव पांडवो का पीछा नहीं छोड़ रहा था, लेकिन जब युद्ध भूमि में जिस बर्बरता से और क्रूरता से निहत्थे अभिमन्यु की हत्या कर दी गई उससे अर्जुन और युधिष्ठिर की वो करुणा भाव ग़ायब हो गई। उन्हें ये बात समझ में आ गई की वो जिसका सामना कर रहे है वो असल में उनके भाई नहीं परन्तु अधर्मी हत्यारे और दुश्मन है, और उसके बाद कृष्ण भगवान के मार्गदर्शन से पांडवो ने हर नैतिक और अनैतिक तरीके से धर्म विजय कर दिखाया।
ठीक महाभारत की तरह आज देश में भी हिन्दू समाज संयम और शांति से रहकर एक युद्ध टालने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी तरफ देश में मुस्लिम समाज 1947 से पहले और बाद में भी अपनी उग्र तरीको से नए नए प्रकार के जिहाद से देश में अशांति मचाता आ रहा है। चाहे 1947 के समय हुऐ दंगे हो या गोधरा के समय हिंदुओ को ज़िंदा जलाना। चाहे1993 का मुंबई सेरियल बॉम्ब ब्लास्ट या 26/11 की अतांकी साज़िश, कश्मीर से हिंदुओ का जबरदस्ती पलायन, कैराना, मालदा , केरला, ऐसे कई प्रकार के ज़ख्म को हिंदुओ ने यह लिया और सेकुलरिज्म की बोझ तले हिन्दू मुस्लिम भाई भाई के नारे लगा लगाते रहे।।
जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा और राम मंदिर पर फैसला हिंदुओ के पक्ष में आया तब मुस्लिम समाज चुप था और सही समय का इंतजार कर रहा था परन्तु कुछ मूर्ख हिंदुओ को इसमें मुसलमानों की अच्छाई नजर आई, लेकिन CAA के बाद जो हिंसक प्रदर्शन हुए और उससे सच्चाई सामने आगई है। शाहीन बाग में हो रहे जिहादी प्रदर्शन और अब दिल्ली में हो रहे दंगे ठीक कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु के हत्या सम्मान हैं। अब तो देश के हिंदुओ को पांडवो की तरह शंका से बाहर आ जाना चाहिए क्योंकि अब दिल्ली में कुरुक्षेत्र की लड़ाई शुरू हो गई है। अब रण में बिना शंका के उतरना होगा वरना अस्तित्व की इस लड़ाई में हिन्दू विलुप्त होजाएगा।
