जया रंजन :भारत की एक बेहद गंभीर समस्या है अवैध घुसपैठियों की,पर इसे नासूर बनाया कांग्रेसी सरकारों ने। उनके लिये ये अवैध घुसपैठ एक वोटबैंक की तरह काम करता रहा और देश को दीमक की तरह चाटकर खोखला करता रहा । अब देश की जड़ें कमज़ोर होती रहीं, तो इससे उन्हें मतलब क्या ? देश के संसाधनों पर ये घुसपैठिये क़ब्ज़ा सा कर बैठे ।यहाँ देशवासियों को अपनी ज़रूरतों के लिये मारा-मारा फिरना पड़ता था,पर सरकार के प्रश्रय में घुसपैठियों को सब आसानीसे हासिल होता रहा । मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निगरानी में NRC की लिस्ट जारी होने पर बेहद सख़्ती से इसे लागू करने की बात की,तो घुसपैठ समर्थकों में इतनी तिलमिलाहट मची है कि पता चल रहा है कि चोट सही जगह पर बड़ी तेज़लगी है। जबकि ये सब सुप्रीम कोर्ट की सख़्त निगरानी में देशहित में किया जा रहा है। अगर लिस्ट में नाम नहीं है तो ६० दिनों के भीतर उचित पेपर जमा कर सही करवाया जा सकता है। इतनी सीधी सी बात लोगों की समझ में तो आ गई पर वोट बैंक पर कड़ा प्रहार होता देख घुसपैठ समर्थक पार्टियाँ एकदम से बौखला गईं। सबसे अचरज की बात तो ये रही कि २००५ में ममता बनर्जी ने संसद में इस मसले को संसद में बड़े ज़ोर-शोर से उठाया था।आज जब बंगाल में उनका ही शासन है तो वोटबैंक की राजनीति के तहत उनके सुर एकदम से बिगड़ गये हैं।उन्हें NRC के इस सख़्त क़दम से आज बेहद आपत्ति है। अपने चेहरे से ये राजनेता खुदबखुद नक़ाब उतार फेंकते हैं और देशहित से परे पार्टीहित पर उतर जाते हैं। सबसे ख़तरनाक तो इनको समर्थन दे रहे विभिन्न मानवाधिकार के तथाकथित वकीलों की दलीलें हैं। बड़ा अचरज होता है जब इनको देश के वंचितो की सूरतेहाल नहीं दिखती। उनकी अवस्था को बेहतर करने की सोच के बजाय घुसपैठियों के मानवाधिकार की वकालत करते-करते ये तक कह देते हैं कि इन्हें वर्क-परमिट या इसी तरह की कोई योजना चलाकर रहने दिया जाये। जिनकी विचारधारा से ही देशहित की बजाय स्वहित दिखती हो,उन्हें सबक़ सिखाने का वक़्त तो अब आ गया है। अब आम जन ने स्पष्ट राय रखने वाली मोदी सरकार के समर्थन में अपनी राय खुलकर रखनी शुरू की है। समय है कि देश को घुसपैठ के दीमक से छुटकारा दिलाने की।
जो अब भी ना जागे तो कब जागोगे ?
जो अब भी ना समझे तो कब समझोगे ?
@JayaRjs जया रंजन
