एक भारतीय के लिये ये गर्व करने की बात है कि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन ने “गुजरात में 182 मीटर ऊंची, दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’” को ‘8 वंडर्स ऑफ एससीओ’ की सूची में शामिल किया है, इसकी घोषणा विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर ने की।
पर्यटन दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है। यह देश के लोगों के लिये नाहीं सिर्फ़ रोज़गार पैदा करता है, बल्कि यह अपनी संस्कृति और परंपराओं का परिचय एक पर्यटक से पूरी दुनिया को करवाता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जब सरदार वल्लभभाई पटेल की 143 वीं जयंती के अवसर पर ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन अक्टूबर 2018 में किया गया था, तब देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने मोदी जी के इस निर्णय का आलोचना जी भर के किया था—जब देश में इतने सारे गरीब और भुखे लोग है तो ऐसी विशालकाय प्रतिमा पर इतना पैसा क्यों खर्च करना चाहिये? इस प्रतिमा पर एक भारी धनराशि खर्च करने के बजाय युवाओं के लिये रोज़गार पैदा क्यों नहीं करते? क्या इससे पर्यावरण को नुक़सान नहीं पहुँचेगा?
जहां तक युवाओं के लिये रोज़गार पैदा करने का प्रश्न है, ‘ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के उदघाटन के एक वर्ष के दौरान ही पर्यटकों की संख्या प्रतिदिन औसतन 15000 रही है, और ये संख्या अमेरिका के ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी” को देखने के लिये आने वाले पर्यटकों की संख्या से भी ज़्यादा है। प्रति दिन 15000 पर्यटक स्थानीय लोगों को कितना रोज़गार देते होंगे ये सोचने वाली बात है।
‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का निर्माण इस उद्देश्य के साथ भी किया गया था कि भारत की वर्तमान और आनेवाली पीढी ये याद रखे कि कैसे देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कई रियासतो और राज्यो को मिलाकर एक सशक्त भारत के सपने को सच किया था।
विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर ने ट्विटर पर सदस्य देशों के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में एससीओ के प्रयासों की सराहना की और कहा कि प्रतिमा को सूची में शामिल करना “निश्चित रूप से एक प्रेरणा के रूप में काम करेगा”।
उम्मीद है ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ ने नाहीं सिर्फ़ भारत को गरवान्वित किया, बल्कि युवाओं के लिये रोज़गार पैदा करके उन आलोचकों का मुँह भी बंद करवा दिया।
