उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय देते हुए अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक पांच एकड़ भूमि आवंटित करें। ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में करीब एक सदी पुराने विवाद का निपटारा कर दिया।
एक हजार से अधिक पृष्ठों के अपने फैसले में अदालत ने कहा कि हिन्दुओं के इस विश्वास को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म ध्वस्त ढांचे के स्थान पर हुआ था। अदालत ने आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट का गठन किया जाए जिसे मंदिर के निर्माण के लिए भूमि सौंपी जा सके।
न्यायमूर्ति एस.ए. बोब्डे, न्यायमूर्ति डी.वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर की खंड पीठ ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि का मालिकाना हक रामलला को सौंपा जाएगा, जो इस मुकदमे के तीन पक्षकारों में से एक है पंरतु यह भूमि केंद्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में रहेगी। यह ऐतिहासिक निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दाखिल की गई 14 अपीलों के संदर्भ में सुनाया गया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिन्दू अपना यह दावा सिद्ध करने में सफल रहे कि बाहरी प्रांगण उनके कब्जे में था और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अपना दावा सिद्ध करने में विफल रहा।
अदालत ने कहा कि विवादित स्थल पर बाहरी प्रांगण में हिन्दुओं द्वारा व्यापक पूजा की जाती रही और साक्ष्यों से पता चलता है कि मुसलमान मस्जिद में जुम्मे की नमाज अदा करते थे, जिससे पता चलता है कि उन्होंने स्थल का कब्जा नहीं छोड़ा था।
